आइना

 


“ आइना ”

आईने में देखा जब मैंने खुद को,

एक अलग ही रूप में पाया मुझको!

क्या दिखाता है वो सिर्फ बाह्य रूप?

मुझे तो एहसास हुआ अपनी अंदरुनी स्वरूप!

बांट सकी मैं वो सारे दुख अपने,

बिना भय के बोली मेरे अनगिनत सपने!

मेरा मज़ाक उड़ाने वाला न था कोई,

स्थिर होकर सुन रहा था आइना वहीं!

कांच के टुकड़ों का है वो सम्मेलन,

सीखा मैंने करना स्वयं को नियंत्रण!

सच्चा यार मानती हूं मैं उसको,

बताती हूं उसको जो न कह पाती किसको!

दुख में संभाल लेता है मुझको ये दर्पण,

लगता है जैसे हो रहा नई ऊर्जा का आगमन!

सुनता है चुपचाप मेरी वो सारी कथा,

लगता है बांट लेता वो मेरी सारी व्यथा!

आईने के साथ ये रिश्ता कितना है अनोखा,

मेरे बुराइयों को अब नहीं कर सकती अनदेखा!

सुख में, दुख में, एकांत में, है वो मेरा सहारा,

लगता है! आज उसको कैसे नहीं निहारा!!

अंदर झांकने का यह सुनहरा अवसर,

पता नही किसने दिया ये सुंदर उपहार!

खुद से मिलन के लिए देर न करो,

दौड़ के जाओ और आइने में देखो!!!

-    जसमिन पांडा  

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