दास्तान मंजिलों की
मंजिले आसान नहीं होती मुकाम तक पहुंचने की..
अक्सर दर्द भरे दिलों को टूटते देखा है हमने..
मंजिले वहाँ होती है जहां ख्वाईश जाकर थम जाती है..
कुछ खामोश लम्हें जहा अपनी पहचान बना जाती है..
मंजिले वहाँ होती है जहां कुछ ख्वाब अँगड़ाई ले रहे होते हैं..
मंजिले वहाँ होती है, जहाँ तक पहुंचने का जुनून दिल में आगाज दे
रहा होता है..
मंजिलों के रास्ते ख्वाब से कहीं बड़े होते हैं..
यूँही मंजिलों के रास्ते में भी, कुछ अहसासों
के अँधेरे होते हैं..
कुछ अनकहे ख्वाब दिल में पूरे होते हैं..
वहां ज़िद अपनी एक मुकम्मल दास्तान लिख रहा होता है..
परिंदों का नया आसमान लिख रहा होता है..
कुछ खामोश यादो का सिलसिला अहसासों का दायरा लिख रहा होता है..
अब तो हमे मंजिले ऐ दास्तान लिखनी है..
कुछ बिखरे ख्वाबों की नजाकत बेशुमार लिखनी है..
बस यूहीं..
कुछ कहानी बेजुबान लिखनी है..
- सीमा वर्मा
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